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कालसर्प योग

राधाकृष्ण श्रीमाली

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2019
पृष्ठ :188
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16929
आईएसबीएन :9788181330659

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ऐसी मान्यता है कि यह एक अत्यंत अशुभ योग है।

कालसर्प के बारे में ज्योतिर्विदों में मतभेद हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह भी अन्य योगों की तरह है, कुछ देवज्ञों ने अपने लाभार्थ इसका प्रचार कुछ ज्यादा ही कर दिया। जबकि कुछ का कहना है कि इस पर विशेष रूप से विचार करना चाहिए, क्योंकि इसका संबंध मानव-जीवन से है। और आपने यह कहावत सुनी ही होगी कि ‘जान है, तो जहान है।’

प्रस्तुत पुस्तक के लेखक ने इस महत्वपूर्ण योग-कालसर्प योग के परिचय में स्पष्ट किया है कि प्राचीन भारतीय ज्योतिष शास्त्र जहां इसके बारे में मौन है, वहीं आज के विद्वानों ने भी इस पर विशिष्ट जानकारी हासिल करने का प्रयास नहीं किया है, अर्थात इसकी उपेक्षा की है। लेखक ने ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों से इस योग से संबंधित जानकारी को जहां इस पुस्तक में संजोया है, वहीं इसके शास्त्र सम्मत और अनुभव सिद्ध सरल-सुगम शांति उपायों की भी चर्चा की है।

इस प्रकार, प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने कालसर्प योग के संबंध में जहां सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक संपूर्ण जानकारी दी है, वहीं उसके निराकरण के लिए शांतिकर्म, सर्प-प्रार्थना, राहु-केतु पूजन, नारायण बलि कर्म तथा रुद्राष्ट्राध्यायी द्वारा भगवान रुद्र के अभिषेक का भी पूर्ण विधि-विधान बताया है, ताकि इस मृत्युदायी योग से पीड़ित जातक सुखी और समृद्ध जीवन जी सकें।

हम भले ही प्रारब्ध के लेख को मिटा न सकें, कर्मों के भोग के बारे में अपनी दृष्टि तो बदल ही सकते हैं।

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